नज्मो के नाम
बात अनुभवो की होती है तो तर्क मे नही ढलती ....क्योकि तर्क तो तर्क को काटना जनता है..................अंतर्मन मे उतरना वो क्या जाने?
कहानी बहुत लम्बी है..........क्योकि कहानियो मे खामोशिया छुपी होती है.....
रिश्तो की खामोशिया......
धरकनो की खामोशिया.......
दर्द और खुशियों की खामोशिया......
और ये खामोशिया जब लफ्जो का चोला पहनती है तो कोई कबीर......कोई ग़ालिब......कोई गुलजार.......का अक्श उभर आता है।
ये blog उन्ही अक्शो के नाम..................आमीन.
2 टिप्पणियां:
kya bolu.....prarthna hai ki aap sabko sahne ki shakti de....
मार्मिक...दुखदायी....
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