शनिवार, अक्तूबर 16, 2010

ugana re mora kata

शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

दुःख..

 कुछ नहीं कहते न रोते हैं 
दुख पिता की तरह होते हैं।
इस भरे तालाब-से बाँधे हुए मन में
 धुँआते-से रहे ठहरे जागते तन में,
लिपट कर हम में बहुत चुपचाप सोते हैं....'अशेष'

शनिवार, अगस्त 07, 2010

पीर



क्यों जलाती व्यर्थ मुझको !
क्यों रुलाती व्यर्थ मुझको ! 
क्यों चलाती व्यर्थ मुझको !
री-अमर-मरू-प्यास,
मेरी मृतु ही साकार बन जा !
पीर मेरी,प्यास बन जा........!!   

सोमवार, अगस्त 02, 2010

तलवार और ढाल

लुहार ने लोहे को गलाया और उसी लोहे से एक तलवार बनायीं व् एक ढाल. दोनों को एक योधा ने खरीद लिया. युद्ध के मैदान मे दोनों साथ ही जाती. योधा ने कई युद्ध लरे और एक दिन बीच मैदान मे जब उसने वार किया तो तलवार टूट गयी. उस टूटी तलवार ने ढाल  से कहा- हम दोनों एक ही लोहे के बने है, एक ही साथ जन्मे है, लेकिन तुम अभी भी साबुत हों औए मैं जीवन कि आखिरी घरिया गिन रही हू.  ऐसा क्यों है..?
      ढाल ने कहा- तुममे और मुझमे एक बुनियादी फर्क है. तुम लोगो को मरने का काम करती हों और मैं लोगो को बचने का.  मेरे साथ बचने वालो कि दुआए साथ होती है औए तुम्हारे साथ मरने वालो कि बददुआये.. बात पूरी होती इसके पहले ही तलवार कबार मे जा चुकी थी.
        

सोमवार, मई 24, 2010

मुकुटधर पांडे : 2

पिछले पोस्ट मे मुकुटधर पाण्डेय के बारे मे अपनी जो जानकारी मैंने दी थी उसपे कई सुधि पाठको ने विशेष टिपण्णी दी कि मैंने कविता नहीं लिखी। अततः अपने आज के पोस्ट मे पाण्डेय जी की कुछ रचनाये पेश कर रही हूँ.....
कविता सुललित पारिजात का हास है,
कविता नश्वर जीवन का उल्लास है ।
कविता रमणी के उर का प्रतिरूप है ,
कविता शैशव का सुविचार अनूप है ।
कविता भावोन्मत्तों का सुप्रलाप है,
कविता कांत-जनों का मृदु आलाप है ।
कविता गत गौरव का स्मरण-विधान है,
कविता चिर-विरही का सकरुण गान है ।
कविता अंतर उर का वचन-प्रवाह है,
कविता कारा बद्ध हृदय की आह है ।
कविता भग्न मनोरथ का उद्गार है,
कविता सुंदर एक संसार है ।
कविता वर वीरों का स्वर करवाल है,
कविता आत्मोद्धारण हेतु दृढ़ ढाल है ।
कविता कोई लोकोत्तर आह्लाद है,
कविता सरस्वती का परम प्रसाद है ।
कविता मधुमय-सुधा-ललित की है घटा,
कविता कवि के एक स्वप्न की है छटा ।
(चन्द्रप्रभा, 1917 में प्रकाशित)

रविवार, मई 16, 2010

गीतों की किस्मत.

चैन से हमको कभी आप ने जीने ना दिया, ज़हर जो चाहा अगर पीना तो पीने ना दिया"। फ़िल्म 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' का यह दिल को छू लेने वाला गीत आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड रिवाइवल' की महफ़िल को रोशन कर रहा है। ओ. पी. नय्यर और आशा भोसले ने साथ साथ फ़िल्म संगीत में एक लम्बी पारी खेली है। करीब करीब १५ सालों तक एक के बाद एक सुपर डुपर हिट गानें ये दोनों देते चले आए हैं। कहा जाता है कि प्रोफ़ेशनल से कुछ हद तक उनका रिश्ता पर्सनल भी हो गया था। ७० के दशक के आते आते जब नय्यर साहब का स्थान शिखर से डगमगा रहा था, उन दिनों दोनों के बीच भी मतभेद होने शुरु हो गए थे। दोनों ही अपने अपने उसूलों के पक्के। फलस्वरूप, दोनों ने एक दूसरे से किनारा कर लिया सन् १९७२ में। इसके ठीक कुछ दिन पहले ही इस गीत की रिकार्डिंग् हुई थी। दोनों के बीच चाहे कुछ भी मतभेद चल रहा हो, दोनों ने ही प्रोफ़ेशनलिज़्म का उदाहरण प्रस्तुत किया और गीत में जान डाल दी। फ़िल्म के रिलीज़ होने के पहले ही इस फ़िल्म के गानें चारों तरफ़ छा गए। ख़ास कर यह गीत इतना ज़्यादा लोकप्रिय हो गया था कि फ़िल्मफ़ेयर पत्रिका ने आशा भोसले को उस साल के अवार्ड फ़ंकशन के लिए 'सिंगर ऒफ़ दि ईयर' चुन लिया। लेकिन दुखद बात यह हो गई कि आशा जी नय्यर साहब से कुछ इस क़दर ख़फ़ा हो गए कि वो ना केवल फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड लेने नहीं आईं, बल्कि इस फ़िल्म से यह गाना भी हटवा दिया जब कि गाना रेखा पर फ़िल्माया जा चुका था। फ़िल्मफ़ेयर अवार्ड फ़ंकशन में नय्यर साहब ने आशा जी का पुरस्कार ग्रहण किया, और ऐसा कहा जाता है कि उस फ़ंकशन से लौटते वक़्त उस अवार्ड को गाड़ी से बाहर फेंक दिया और उसके टूटने की आवाज़ भी सुनी। कहने की आवश्यकता नहीं कि आशा और नय्यर के संगम का यह आख़िरी गाना था। समय का उपहास देखिए, इधर इतना सब कुछ हो गया, और उधर इस गीत में कैसे कैसे बोल थे, "आप ने जो है दिया वो तो किसी ने ना दिया", "काश ना आती आपकी जुदाई मौत ही आ जाती"। ऐसा लगा कि आशा जी नय्यर साहब के लिए ही ये बोल गा रही हैं। बहुत अफ़सोस होता है यह सोचकर कि इस ख़ूबसूरत संगीतमय जोड़ी का इस तरह से दुखद अंत हुआ। ख़ैर, सुनिए यह मास्टरपीस और सल्युट कीजिए ओ. पी. नय्यर की प्रतिभा को! तो अब जाइये और इस गाने का लुत्फ़ उठाइए.
साभार : आवाज़.

सोमवार, अप्रैल 26, 2010

तुम्हारे लिए...


मैंने कब कहा
तुमसे,
तुम आकाश हो जाओ
मेरे लिए.....
पर
मैं-
धरती होना चाहती हूँ
तुम्हारे लिए........ "