शनिवार, मार्च 29, 2008

एक सुखा पत्ता


हाँ,
हिला तो था कुछ.......
आई तो थी आवाज
खङकने की
तब......
जब मैं गुजर रही थी
तेरी यादो के जंगल से।
ठुंठ kharre hai वहा
हरियाली का नामो-निशा नही
केवल वही-
अकेला था वहा.........

तेरा एहसास लिए
एक सुखा पत्ता
बस..........एक सुखा पत्ता.

बुधवार, मार्च 26, 2008

तुम


जिसमे नींद भर सो न सकी
बरखा की वो रात हो तुम.
कहते-कहते भी कह न सकी
वो अधूरी बात हो तुम.
हाथो को बढ़ा कर छूना जो चाहा
तो दूर हुए एहसास सा तुम.
चांदनी रातो मे तनहा से हम
और गुले-गुलजार हो तुम.
बहुत चाहा के देख लू नजर भर के
लेकिन पलको पे बैठे मेहमा हो तुम.
पन्ने के इक छोर पे लिखी
अपनी कहानी का विराम हो तुम.
कह सको तो कह दो इक बार
मेरे बस मेरे मेहरबा हो तुम.

बुधवार, मार्च 19, 2008

चूडियाँ


इतनी उदास कब थी कलाई मे चूडियाँ ,
ढीली परी है किसकी जुदाई मे चूडियाँ
इस साल भेजे है तोहफे नए -नए
कंगन जुलाई मे तो दिसम्बर मे चूडियाँ "

सोमवार, मार्च 17, 2008

ख्याल


बूंद थी
वो जाने क्या थी
मिटटी मे गुम हो गए थी
पाव के नीचे जरा कुछ गीलापन तो है अभी
फिर भी
फलक से रिस रही इस धूप मे
आवारगी आसा नही
ये हौसले की बात है
लेकिन
बदन की बस्तियों मे फासले की रात है
देखो
जमी महवर पे अपने मस्त है
हां
बारहा मह्सूस होता है
के दुनिया धुल मे लिपटी हुई इक बूंद है
बस................इक ...................बूंद.

शुक्रवार, मार्च 14, 2008

जाने दो


आँखे मीचे
रंग भरे आकाश के नीचे
दर्द के तारो मे लिपटी आवाज के पीछे
इक लफ्ज लटकता होगा शायद
जाने दो
शियानो मे
इस जिस्म के खाली खानों मे
या नींद से जगी रातो के बियाबानो मे
इक ख्वाब भटकता होगा शायद
जाने दो
बेमानी सा
कुछ आंखो के खारे पानी सा
इक नाज्म्नुमा, इक गीत गजल कहानी सा
ये रब्त खटकता होगा शायद
जाने दो
इन बेकार खयालो को
अब तुम क्यो आख़िर नोटिस लो
जाने दो.......जाने दो..................
rashmi

स्त्री


घृणा से
टूटे हुए लोगो
दर्पण और अनास्था से
असंतुष्ट महिलाओ को
वक्तव्य न दो
मोहित करती है वह तस्वीर
जो बसी है रग-रग
डरती हू
कि छु कर उसे मैली न कर दू
हरे पत्तो से घिरे गुलाब की तरह
खूबसूरत हो तुम
पर इसकी उम्मीद नही
कि तुम्हे देख सकू
इसलिए
उद्धत भाव से
अपनी बुद्धि मंद करना चाहती हूं।
बचपन में परायी कहा
फिर सुहागन
अब विधवा
ओह किसी ने पुकारा नही नाम लेकर
मेरे जन्‍म पर खूब रोयी मां
मैं नवजात
नहीं समझ पायी उन आंसुओं का अर्थ
क्‍या वाकई मां
पुत्र की चाहत में रोई थी।
मेरी तकदीर पर वाहवाही लूटते हैं लोग
पर अपने घ्रर में ही
घूमती परछाई बनती जा रही मैं
मैं ढूंढ रही पुरानी खुशी
पर मिलती हैं तोडती लहरें
खुद से सुगंध भी आती हैं एक
पर उस फूल का नाम
भ्रम ही रहा मेरे लिए।
शादी का लाल जोडा पहनाया था मां ने
उसकी रंगत ठीक ही थी
पर उसमें टंके सितारे उसकी रंगत
ढंक रहे थे
मुझे दिखी नहीं वहां मेरी खुशियां
मुझ पर पहाड सा टूट पडा एक शब्‍द
शादी
बागों में सारे फूल खिल उठे
पर मेरी चुनरी की लाली फीकी पडती गयी
बक्‍से में बंद बंद।
-आभा

मंगलवार, मार्च 04, 2008

शाकिर परवीन

वो तो ख़ुशबू है / परवीन शाकिर
~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~*~
वो तो ख़ुशबू है

हवाओं में बिखर जाएगा
मसला फूल का है फूल किधर जायेगा
हम तो समझे थे के ज़ख़्म है भर जायेगा
क्या ख़बर थी के रग-ए-जाँ में उतर जायेगा
वो हवाओं की तरह ख़ानाबजाँ फिरता है
एक झोंका है जो आयेगा गुज़र जायेगा
वो जब आयेगा तो फिर उसकी रफ़ाक़त के लिये
मौसम-ए-गुल मेरे आँगन में ठहर जायेगा
आख़िर वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जायेगा