रविवार, फ़रवरी 08, 2009

peter korman


चाहे कुछ भी घटित हो : लिखो

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अगर तुम्हारे शरीर मे अंधकार घिर आता है

तो लिखो उस रौशनी के बारे मे

जो बाहर खङी इन्तजार करती है........

सोमवार, फ़रवरी 02, 2009

मुकुटधर पाण्डेय

इनका जन्म 1815 ईस्वी मे बालपुर, विलासपुर मे हुआ था। अपने अग्रज लोचनप्रसाद पाण्डेय की प्रेरणा से इन्होने 1909 ईस्वी मे लेख-कवितायें आदि लिखना प्रारम्भ किया। द्विवेदी कालिन पत्रिका "सरस्वती" आदि अन्य पत्रिकाओ मे इनकी रचनाये प्रमुखता से छपती रही हैं। प्रथम काव्य संकलन 'पूजा-फूल' नाम से प्रकाशित हुआ। 'कानन-कुसुम', 'शैल बाला', 'समाज कंटक', 'लछमा', 'परिश्रम', तथा 'ह्रदय-दान' नमक पुस्तके भी उल्लेखनीय हैं। इन्होने उच्च मानवीय मूल्यों पर बल देते हुए उपदेश की जगह आंतरिक संवेदना जगाने तथा भावात्मकता को प्रधानता दी हैं।इनकी एक प्रमुख कविता 'कवि' शीर्षक से नीचे प्रस्तुत हैं।

कवि


बतलाओ, वह कौन है जिसको कवि कहता सारा संसार?
रख देता शब्दों को क्रम से, घटा-बढ़ा जो किसी प्रकार।
क्या कवि वही? काव्य किसलय क्या उसका ही लहराता है,
जिसके यशः सुमन-सौरभ से निखिल विश्व भर जाता है।
नहीं, नहीं, मेरे विचार में कवि तो है उसका ही नाम
यम-दम-संयम के पालन युत होते हैं जिसके सब काम।
रहती है कल्पना–कामिनी जिसके हृदय-कमल आसीन
संचारित करती सदैव जो भाँति-भाँति के भाव नवीन।
भूत, भविष्यत्, वर्तमान पर होती है जिसकी सम दृष्टि
प्रतिभा जिसकी मर्त्यधाम में करती सदा सुधा की वृष्टि।
जो करुणा श्रृंगार, हास्य वीरादि नवों रस का आधार
जिसको ईश्वरीय तत्वों का अनुभव युत है ज्ञान-अपार।
जिसकी इच्छा से अरण्य में रम्य फूल खिल जाता है
नंदन वन से पारिजात की लता छीन जो लाता है।
मरीचिका-मय मरुस्थली में जिसकी आज्ञा के अनुसार
कलकल नादपूर्ण बहती है अतिशय शीतल जल की धार।
(सरस्वती, अक्टूबर 1919 में प्रकाशित)