शुक्रवार, अगस्त 20, 2010

दुःख..

 कुछ नहीं कहते न रोते हैं 
दुख पिता की तरह होते हैं।
इस भरे तालाब-से बाँधे हुए मन में
 धुँआते-से रहे ठहरे जागते तन में,
लिपट कर हम में बहुत चुपचाप सोते हैं....'अशेष'

शनिवार, अगस्त 07, 2010

पीर



क्यों जलाती व्यर्थ मुझको !
क्यों रुलाती व्यर्थ मुझको ! 
क्यों चलाती व्यर्थ मुझको !
री-अमर-मरू-प्यास,
मेरी मृतु ही साकार बन जा !
पीर मेरी,प्यास बन जा........!!   

सोमवार, अगस्त 02, 2010

तलवार और ढाल

लुहार ने लोहे को गलाया और उसी लोहे से एक तलवार बनायीं व् एक ढाल. दोनों को एक योधा ने खरीद लिया. युद्ध के मैदान मे दोनों साथ ही जाती. योधा ने कई युद्ध लरे और एक दिन बीच मैदान मे जब उसने वार किया तो तलवार टूट गयी. उस टूटी तलवार ने ढाल  से कहा- हम दोनों एक ही लोहे के बने है, एक ही साथ जन्मे है, लेकिन तुम अभी भी साबुत हों औए मैं जीवन कि आखिरी घरिया गिन रही हू.  ऐसा क्यों है..?
      ढाल ने कहा- तुममे और मुझमे एक बुनियादी फर्क है. तुम लोगो को मरने का काम करती हों और मैं लोगो को बचने का.  मेरे साथ बचने वालो कि दुआए साथ होती है औए तुम्हारे साथ मरने वालो कि बददुआये.. बात पूरी होती इसके पहले ही तलवार कबार मे जा चुकी थी.