जिसमे नींद भर सो न सकी
बरखा की वो रात हो तुम.
कहते-कहते भी कह न सकी
वो अधूरी बात हो तुम.
हाथो को बढ़ा कर छूना जो चाहा
तो दूर हुए एहसास सा तुम.
चांदनी रातो मे तनहा से हम
और गुले-गुलजार हो तुम.
बहुत चाहा के देख लू नजर भर के
लेकिन पलको पे बैठे मेहमा हो तुम.
पन्ने के इक छोर पे लिखी
बरखा की वो रात हो तुम.
कहते-कहते भी कह न सकी
वो अधूरी बात हो तुम.
हाथो को बढ़ा कर छूना जो चाहा
तो दूर हुए एहसास सा तुम.
चांदनी रातो मे तनहा से हम
और गुले-गुलजार हो तुम.
बहुत चाहा के देख लू नजर भर के
लेकिन पलको पे बैठे मेहमा हो तुम.
पन्ने के इक छोर पे लिखी
अपनी कहानी का विराम हो तुम.
कह सको तो कह दो इक बार
मेरे बस मेरे मेहरबा हो तुम.
1 टिप्पणी:
rashmi, is baar naye roop-rang mein...
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