शुक्रवार, मार्च 14, 2008

जाने दो


आँखे मीचे
रंग भरे आकाश के नीचे
दर्द के तारो मे लिपटी आवाज के पीछे
इक लफ्ज लटकता होगा शायद
जाने दो
शियानो मे
इस जिस्म के खाली खानों मे
या नींद से जगी रातो के बियाबानो मे
इक ख्वाब भटकता होगा शायद
जाने दो
बेमानी सा
कुछ आंखो के खारे पानी सा
इक नाज्म्नुमा, इक गीत गजल कहानी सा
ये रब्त खटकता होगा शायद
जाने दो
इन बेकार खयालो को
अब तुम क्यो आख़िर नोटिस लो
जाने दो.......जाने दो..................
rashmi

1 टिप्पणी:

Unknown ने कहा…

bahut achhi, halanki achhi vajib lafj nahin hai