शनिवार, अप्रैल 26, 2008

याद है मुझे...
तुमने कहा था.........
इक पुरखार पौधा बनुगा
जहा तुम मुझे हुस्न दोगी
...........तुम्हे मैं पनाह.

रविवार, अप्रैल 06, 2008

अलग


अलग है

ऐसे

क्यो हम

जैसे............

रात और

दिन..........

शुक्रवार, अप्रैल 04, 2008

शाम


बेमहर रात
और बदमिजाज..........
झेल लेने के बाद
शाम तोहफा है
आस्मा का अता किया
शाम को संभालो,
सजाओ,

इसको सवारों,
मसरफ मे अपने लाओ
इससे पहले
के रात इसे अपने जहर से
मार डाले.........
उठो .


आकाश


तुम

आकाश होना चाहते हो
.................हो जाओ
मैं
धरती ही बनू
.........ये मेरी आरजू
फर्क सिर्फ़ इतना है.........
तुम
छाए हो लोगो पर
मैं
बिछी हू लोगो के लिए..............आमीन.