बूंद थी
वो जाने क्या थी
मिटटी मे गुम हो गए थी
पाव के नीचे जरा कुछ गीलापन तो है अभी
फिर भी
फलक से रिस रही इस धूप मे
आवारगी आसा नही
ये हौसले की बात है
लेकिन
बदन की बस्तियों मे फासले की रात है
देखो
जमी महवर पे अपने मस्त है
हां
बारहा मह्सूस होता है
के दुनिया धुल मे लिपटी हुई इक बूंद है
बस................इक ...................बूंद.
वो जाने क्या थी
मिटटी मे गुम हो गए थी
पाव के नीचे जरा कुछ गीलापन तो है अभी
फिर भी
फलक से रिस रही इस धूप मे
आवारगी आसा नही
ये हौसले की बात है
लेकिन
बदन की बस्तियों मे फासले की रात है
देखो
जमी महवर पे अपने मस्त है
हां
बारहा मह्सूस होता है
के दुनिया धुल मे लिपटी हुई इक बूंद है
बस................इक ...................बूंद.
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