मंगलवार, मार्च 04, 2008

शाकिर परवीन

वो तो ख़ुशबू है / परवीन शाकिर
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वो तो ख़ुशबू है

हवाओं में बिखर जाएगा
मसला फूल का है फूल किधर जायेगा
हम तो समझे थे के ज़ख़्म है भर जायेगा
क्या ख़बर थी के रग-ए-जाँ में उतर जायेगा
वो हवाओं की तरह ख़ानाबजाँ फिरता है
एक झोंका है जो आयेगा गुज़र जायेगा
वो जब आयेगा तो फिर उसकी रफ़ाक़त के लिये
मौसम-ए-गुल मेरे आँगन में ठहर जायेगा
आख़िर वो भी कहीं रेत पे बैठी होगी
तेरा ये प्यार भी दरिया है उतर जायेगा

2 टिप्‍पणियां:

Ek ziddi dhun ने कहा…

han, ye pyaar ke dariya jitni zaldee chadhte hain, usse jaldi utar jaate hain....isi liye log pyaar ko mahaj dil ka masla kahkar zimmedaari se bachne kee koshish karte rahte hain

shahnawaz khan ने कहा…

theek kaha hai shakir ji ne ........bahut sachchaai hai sher mein