नज्मो के नाम
बात अनुभवो की होती है तो तर्क मे नही ढलती ....क्योकि तर्क तो तर्क को काटना जनता है..................अंतर्मन मे उतरना वो क्या जाने?
कहानी बहुत लम्बी है..........क्योकि कहानियो मे खामोशिया छुपी होती है.....
रिश्तो की खामोशिया......
धरकनो की खामोशिया.......
दर्द और खुशियों की खामोशिया......
और ये खामोशिया जब लफ्जो का चोला पहनती है तो कोई कबीर......कोई ग़ालिब......कोई गुलजार.......का अक्श उभर आता है।
ये blog उन्ही अक्शो के नाम..................आमीन.
बुधवार, मार्च 19, 2008
चूडियाँ
इतनी उदास कब थी कलाई मे चूडियाँ , ढीली परी है किसकी जुदाई मे चूडियाँ इस साल भेजे है तोहफे नए -नए कंगन जुलाई मे तो दिसम्बर मे चूडियाँ "
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