नज्मो के नाम
बात अनुभवो की होती है तो तर्क मे नही ढलती ....क्योकि तर्क तो तर्क को काटना जनता है..................अंतर्मन मे उतरना वो क्या जाने?
कहानी बहुत लम्बी है..........क्योकि कहानियो मे खामोशिया छुपी होती है.....
रिश्तो की खामोशिया......
धरकनो की खामोशिया.......
दर्द और खुशियों की खामोशिया......
और ये खामोशिया जब लफ्जो का चोला पहनती है तो कोई कबीर......कोई ग़ालिब......कोई गुलजार.......का अक्श उभर आता है।
ये blog उन्ही अक्शो के नाम..................आमीन.
शुक्रवार, अगस्त 20, 2010
दुःख..
कुछ नहीं कहते न रोते हैं दुख पिता की तरह होते हैं।
इस भरे तालाब-से बाँधे हुए मन में
धुँआते-से रहे ठहरे जागते तन में,
लिपट कर हम में बहुत चुपचाप सोते हैं....'अशेष'
4 टिप्पणियां:
बहुत अच्छा लिखा आपने.बधाई.
bahut accha laga. ekdum apne jaisa... apno ki tarah..
aaap ki ye kavitai pad kar patanahi man me kya chalta hai
Nice one nice article
एक टिप्पणी भेजें