शनिवार, अगस्त 07, 2010

पीर



क्यों जलाती व्यर्थ मुझको !
क्यों रुलाती व्यर्थ मुझको ! 
क्यों चलाती व्यर्थ मुझको !
री-अमर-मरू-प्यास,
मेरी मृतु ही साकार बन जा !
पीर मेरी,प्यास बन जा........!!   

2 टिप्‍पणियां:

swayambara ने कहा…

kya bolu.....prarthna hai ki aap sabko sahne ki shakti de....

हिंदी साहित्य संसार : Hindi Literature World ने कहा…

मार्मिक...दुखदायी....