शनिवार, अगस्त 02, 2008

भारतेंदु हरिश्चंद्र

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल
बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल ।
अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन
पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन ।
उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय
निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय ।
निज भाषा उन्नति बिना, कबहुं न ह्यैहैं सोय
लाख उपाय अनेक यों भले करे किन कोय ।
इक भाषा इक जीव इक मति सब घर के लोग
तबै बनत है सबन सों, मिटत मूढ़ता सोग ।
और एक अति लाभ यह, या में प्रगट लखात
निज भाषा में कीजिए, जो विद्या की बात ।
तेहि सुनि पावै लाभ सब, बात सुनै जो कोय
यह गुन भाषा और महं, कबहूं नाहीं होय ।
विविध कला शिक्षा अमित, ज्ञान अनेक प्रकार
सब देसन से लै करहू, भाषा माहि प्रचार ।
भारत में सब भिन्न अति, ताहीं सों उत्पात
विविध देस मतहू विविध, भाषा विविध लखात ।
सब मिल तासों छांड़ि कै, दूजे और उपाय
उन्नति भाषा की करहु, अहो भ्रातगन आय ।

4 टिप्‍पणियां:

Nitish Raj ने कहा…

बहुत खूब, उच्च विचार, उत्तम पोस्ट, अच्छा पेज। सुंदर....अति उत्तम।।।।

राज भाटिय़ा ने कहा…

धन्यवाद एक अच्छी पोस्ट के लिये

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

इस पोस्‍ट की जितनी भी प्रसंशा की जाये कम होगा

Ek ziddi dhun ने कहा…

आप अच्छी सीरीजचला रही हैं लेकिन मेहरबानी कर स्त्री,दलित और अल्पसंख्यकों के प्रति भारी घृणा और सत्ता के प्रति चापलूसी का रवैया रखने वाले इन महानुभावों को जरा आलोचनात्मक ढंग से भी देखा जाए।