रविवार, अगस्त 03, 2008

महावीर प्रसाद द्विवेदी

जन्म: 1864 निधन: 1938


जहाँ हुए व्यास मुनि-प्रधान,
रामादि राजा अति कीर्तिमान।
जो थी जगत्पूजित धन्य-भूमि ,
वही हमारी यह आर्य्य- भूमि ।।
2
जहाँ हुए साधु हा महान्
थे लोग सारे धन-धर्म्मवान्।
जो थी जगत्पूजित धर्म्म-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
3
जहाँ सभी थे निज धर्म्म धारी,
स्वदेश का भी अभिमान भारी ।
जो थी जगत्पूजित पूज्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
4
हुए प्रजापाल नरेश नाना,
प्रजा जिन्होंने सुत-तुल्य जाना ।
जो थी जगत्पूजित सौख्य- भूमि ,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
5
वीरांगना भारत-भामिली थीं,
वीरप्रसू भी कुल- कामिनी थीं ।
जो थ जगत्पूजित वीर- भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
6
स्वदेश-सेवी जन लक्ष लक्ष,
हुए जहाँ हैं निज-कार्य्य दक्ष ।
जो थी जगत्पूजित कार्य्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
7
स्देश-कल्याण सुपुण्य जान,
जहाँ हुए यत्न सदा महान।
जो थी जगत्पूजित पुण्य भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
8
न स्वार्थ का लेण जरा कहीं था,
देशार्थ का त्याग कहीं नहीं था।
जो थी जगत्पूजित श्रेष्ठ-भुमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
9
कोई कभी धीर न छोड़ता था,
न मृत्यु से भी मुँह मोड़ता था।
जो थी जगत्पूजित धैर्य्य- भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
10
स्वदेश के शत्रु स्वशत्रु माने,
जहाँ सभी ने शर-चाप ताने ।
जो थी जगत्पूजित शौर्य्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य्य-भूमि।।
11
अनेक थे वर्णे तथापि सारे
थे एकताबद्ध जहाँ हमारे
जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य भूमि ।।
12
थी मातृभूमि-व्रत-भक्ति भारी,
जहां हुए शुर यशोधिकारी ।
जो थी जगत्पूजित कीर्ति-भूमि,
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
13
दिव्यास्त्र विद्या बल, दिव्य यान,
छाया जहाँ था अति दिव्य ज्ञान ।
जो थी जगत्पूजित दिव्यभूमि,
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
14
नये नये देश जहाँ अनेक,
जीत गये थे नित एक एक ।
जो थी जगत्पूजित भाग्यभूमि,
वही हमारी यह आर्यभूमि ।।
15
विचार एसे जब चित्त आते,
विषाद पैदा करते, सताते ।
न क्या कभी देव दया करेंगे ?
न क्या हमारे दिन भी फिरेंगे ?
(अप्रैल, 1906 की सरस्वती में प्रकाशित )

4 टिप्‍पणियां:

दिनेशराय द्विवेदी ने कहा…

उस महान विभूति महावीर प्रसाद द्विवेदी को शत शत नमन!

राज भाटिय़ा ने कहा…

महावीर प्रसाद द्विवेदी की रचनये हम ने स्कुल ओर कालेज मे पढी हे, मेरी तरफ़ से इन्हे प्रणाम

Pramendra Pratap Singh ने कहा…

इनकी रचना महाकवि माघ का प्रभात वर्णन हमने पढ़ा था बहुत अच्‍छा लगा था।

Ek ziddi dhun ने कहा…

अनेक थे वर्णे तथापि सारे
थे एकताबद्ध जहाँ हमारे
जो थी जगत्पूजित ऐक्य-भूमि,
वही हमारी यह आर्य भूमि ।।....
अब इन लाइनों को क्या कहिएगा। जो हमारे हिंदी साहित्य, हिंदी जाति और हिंदी नवजागरण के संस्थापक कहलाने वाले क्या कर रहे थे, इन लाइनों से ही साफ है। ये हिंदू नवजागरण कर रहे थे जिसे पुरातनपंथी ढंग से सराहना ही इनका मुख्य उद्देश्य था। बड़ी आबादी पर कोढ़ की तरह चिपका दी गई वर्ण व्यवस्था का गुणगान यही लोग कर सकते थे।