मंगलवार, जून 24, 2008

आमिर खुसरो


१.खा गया पी गया
दे गया बुत्ता
ऐ सखि साजन?
ना सखि कुत्ता!


२।लिपट लिपट के वा के सोई
छाती से छाती लगा के रोई
दांत से दांत बजे तो ताड़ा
ऐ सखि साजन?
ना सखि जाड़ा!


३।रात समय वह मेरे आवे
भोर भये वह घर उठि जावे
यह अचरज है सबसे न्यारा
ऐ सखि साजन?
ना सखि तारा!


४.नंगे पाँव फिरन नहिं देत
पाव से मिट्टी लगन नहिं देत
पाव का चूमा लेत निपूता
ऐ सखि साजन?
ना सखि जूता!


५।ऊंची अटारी पलंग बिछायो
मैं सोई मेरे सिर पर आयो
खुल गई अंखियां भयी आनंद
ऐ सखि साजन?
ना सखि चांद!

६।जब माँगू तब जल भरि लावे

मेरे मन की तपन बुझावे

मन का भारी तन का छोटा

ऐ सखि साजन?
ना सखि लोटा!




७।वो आवै तो शादी होय
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागें वा के बोल
ऐ सखि साजन?
ना सखि ढोल!



८।बेर-बेर सोवतहिं जगावे
ना जागूँ तो काटे खावे
व्याकुल हुई मैं हक्की बक्की
ऐ सखि साजन?
ना सखि मक्खी!



९.अति सुरंग है रंग रंगीलो
है गुणवंत बहुत चटकीलो
राम भजन बिन कभी न सोता
ऐ सखि साजन?
ना सखि तोता!



१०।आप हिले और मोहे हिलाए
वा का हिलना मोए मन भाए
हिल हिल के वो हुआ निसंखा
ऐ सखि साजन?
ना सखि पंखा!



११।अर्ध निशा वह आया भौन
सुंदरता बरने कवि कौन
निरखत ही मन भयो अनंदऐ
सखि साजन?
ना सखि चंद!



१२।शोभा सदा बढ़ावन हारा
aankhin से छिन होत न न्यारा
आठ पहर मेरो मनोरंजन
a सखि साजन?
ना सखि अंजन!



१३।जीवन सब जग जासों कहे
बिनु नेक न धीरज रहे

हरे छिनक में हिय की पीर
a सखि साजन?
ना सखि नीर!



१४।बिन आये सबहीं सुख भूले
aaye ते अँग-अँग सब फुले
siri भई लगावत छाती
a सखि साजन?
ना सखि पाती!



१५।सगरी रैन छतियां पर राख
रूप रंग सब वा का चाख
भोर भई जब दिया उतार
ऐ सखी साजन?
ना सखि हार!



१६।पड़ी थी मैं अचानक चढ़ आयो
जब उतरयो तो पसीनो आयो
सहम गई नहीं सकी पुकार
ऐ सखि साजन?
ना सखि बुखार!



१७।सेज पड़ी मोरे आंखों आए
डाल सेज मोहे मजा दिखाए
किस से कहूं अब मजा में अपना
ऐ सखि साजन?
ना सखि सपना!



१८।बखत बखत मोए वा की आस
रात दिना ऊ रहत मो पास
मेरे मन को सब करत है काम
ऐ सखि साजन?
ना सखि राम!



१९.सरब सलोना सब गुन नीकावा
बिन सब जग लागे फीकावा
के सर पर होवे कोन एल
a सखी ‘साजन’
ना सखि! ,लोन(नमक)



२०.सगरी रैन मिही संग जागा
भोर भई तब बिछुड़न लागा
उसके बिछुड़त फाटे हिया’
ए सखि ‘साजन’
ना,सखि! दिया(दीपक)



२१.वह आवे तब शादी होय,
उस बिन दूजा और न कोय
मीठे लागे वाके बोल
a सखी साजन
ना सखि ! ‘ढोल’

1 टिप्पणी:

तसलीम अहमद ने कहा…

vah maza aa gaya. rashmi ji khusro ko padha, kya kahun shabd hi nahi hain. aap badhai ki patra hain itne achhe collection ki liye.
tasleem ahmed