शुक्रवार, मई 02, 2008



और अब चुलबुल की बातें
रश्मि
रश्मि पवन एक दूसरे के हमसफ़र हैं और चुलबुल उनकी बेटी। एक समय था, जब हम और पवन साथ रहते थे। तब रश्मि और पवन प्रेम की आखिरी गली पार कर रहे थे। वैलेंटाइन डे और रश्मि के बर्थडे में पवन एक बड़ी पार्टी ऑर्गनाइज़ करता था। बाद में हालात ने हमें शहर दर शहर भटकाया, लेकिन पटना में पवन की डिमांड बढ़ती रही। वह आज राष्‍ट्रीय स्‍तर का कार्टूनिस्‍ट है। हिंदुस्‍तान अख़बार के लिए कार्टून बनाता है। रश्मि पटना विश्‍वविद्यालय की लाइब्रेरी में वक्‍त गुज़ारती है। चुलबुल इन दोनों के प्रेम की एक मज़बूत कड़ी है।
अविनाश
बेटियों का ब्लॉग। यानि बेटियों की बातें। अपनी भी एक बिटिया है। नाम चुलबुल। उम्र 3 साल। वह क्या आयी, जिन्दगी ही चुलबुला गयी है। 'माँ सुनो एक बात... माँ देखो तो सही... माँ कुछ आईडिया लगाओ... पापा को तो कुछ भी समझ नही आता है... देखो पापा सब के सामने प्यारी ले रहे हैं...' कितनी ही ऐसी आवाजें दिन-रात हमारे घर मे गूंजा करती है। चुलबुल जब पैदा हुई, तो उसके एक-एक दिन की हरकतें हमें वैसे ही अचरज मे डाला करती थी, जैसे आज 'अविनाश-मुक्‍ता' को। बाबूजी उसकी दिन-रात बनती-बिगाड़ती हरकतों को देख अक्सर मुझसे कहते... "रश्मि लिखा करो तुम... इसकी एक-एक बातो को..." तब मैं मुस्करा दिया करती थी। और मुस्कुराते-मुस्कुराते ही तीन साल निकल गये। कभी-कभी अफ़सोस भी होता, लेकिन इस ब्लॉग ने मेरे अंदर की डायरी के पन्ने ही खोल दिये मानो।आज चुलबुल स्कूल जाने लगी है। अब तो उसके पास ढेर सी बातें हुआ करती हैं। "माँ आज नंदनी नही आयी... अंसिका को मैम दाति..." और भी बहुत सी बातें। कार्टून की लाइनें खीचने मे माहिर है। कल्पनाएं भी उतनी ही अद्-भुत। "इसकी मम्मी छोर कर चली गई है इसलिए रो रहा है..." तो कभी ख़ुद को आइसक्रीम खाने को न मिले तो कार्टून की शक्ल मे बना कर बोलेगी, "देखो गन्दा देखो ठंड मे आइसक्रीम खा रहा है।" कार्टून सच मे चुलबुल बहुत बढिया बनाती है। अगली बार उसके बनाये कार्टून के साथ।
Posted by avinash at Wednesday, February 27, 2008 0 comments
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1 टिप्पणी:

आलोक ने कहा…

कार्टूनों का इन्तज़ार रहेगा।