शुक्रवार, अप्रैल 04, 2008

आकाश


तुम

आकाश होना चाहते हो
.................हो जाओ
मैं
धरती ही बनू
.........ये मेरी आरजू
फर्क सिर्फ़ इतना है.........
तुम
छाए हो लोगो पर
मैं
बिछी हू लोगो के लिए..............आमीन.

2 टिप्‍पणियां:

Ek ziddi dhun ने कहा…

rashmi, ek baat hai, in lines mein, aur ek seema bhi..
aap padh kya rahee hain?

manjula ने कहा…

बहुत गहराई है इन पंक्तियों में. बहुत बढि़या रश्मि जी