काहे को ब्याहे बिदेस, अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
हमको दियो परदेस
अरे लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
हम तो बाबुल तोरे खूँटे की गैयाँ
जित हाँके हँक जैहें,
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
हम तो बाबुल तोरे बेले की कलियाँ
घर-घर माँगे हैं जैहें,
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
कोठे तले से पलकिया जो निकली
बीरन में छाए पछाड़,
अरे, लखिय बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
हम तो हैं बाबुल तोरे पिंजरे की चिड़ियाँ
भोर भये उड़ जैहें
अरे, बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
तारों भरी मैनें गुड़िया जो छोडी़
छूटा सहेली का साथ
अरे, बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
डोली का पर्दा उठा के जो देखा
आया पिया का देस
अरे, बाबुल मोरे
काहे को ब्याहे बिदेस
7 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर व मधुर गीत है। युगों से उस प्रश्न का उत्तर बेटियाँ खोजती रहीं, नहीं मिला तो अब अपने मन से देश या परदेश में विवाह कर प्रश्न को ही निरस्त कर रहीं हैं। वैसे इस प्रश्न का उत्तर सभ्य समाज में अधिकतर दिया नहीं जाता क्योंकि उत्तर ही कुछ ऐसा है। 'बेटी और......अपने से जितना दूर रखा जाए उतना अच्छा !' कड़वा सच !
घुघूती बासूती
बहुत बढ़िया...
बहुत आभार-मेरी पत्नी बड़ा मन लगा कर गाती हैं इसे. :)
बेहद खूबसूरत अभी एक tv कार्यक्रम में एक लड़की ने इसे बड़े दिल से गाया था, कालजयी रचना, खुसरो साब की एक और कव्वाली का आनन्द आप भी लें http://podcast.hindyugm.com/2008/07/blog-post_21.html
mun dukhaati hai ye rachna..fir bhi bahut priy hai..abhaar
भैया को दियो बाबुल महले दो-महले
हमको दियो परदेस
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ये इस गीत की सबसे मार्मिक पंक्तियाँ हैं !सचमुह रुला देने वालीं ।
धन्यवाद इसे फिर से पढवाने के लिए ।
'घर मे रहते हुए गैरों की तरह होती हैं,
बेटियाँ धान के पौधों की तरह होती हैं.
उड़ के एक रोज़ बहुत दूर चली जाती हैं,
घर की शाखों पे यह चिडयों की तरह होती हैं.'
....................." मुनव्वर राणा "
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