नज्मो के नाम
बात अनुभवो की होती है तो तर्क मे नही ढलती ....क्योकि तर्क तो तर्क को काटना जनता है..................अंतर्मन मे उतरना वो क्या जाने?
कहानी बहुत लम्बी है..........क्योकि कहानियो मे खामोशिया छुपी होती है.....
रिश्तो की खामोशिया......
धरकनो की खामोशिया.......
दर्द और खुशियों की खामोशिया......
और ये खामोशिया जब लफ्जो का चोला पहनती है तो कोई कबीर......कोई ग़ालिब......कोई गुलजार.......का अक्श उभर आता है।
ये blog उन्ही अक्शो के नाम..................आमीन.
5 टिप्पणियां:
बहुत बढिया!!!
बेहद सुंदर...आशा और आत्म विश्वास से पूर्ण.
dilchasp........
सिर्फ़ इतना ही कि पहली ही नज़र में आपने प्रभावित किया ..शुक्रिया आगे भी प्रभावित होते रहना चाहेंगे
अजय कुमार झा
अच्छी है पंक्तियाँ ।
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