बुधवार, अक्तूबर 15, 2008

सखी वे मुझसे कह कर जाते.....


सखी वे मुझसे कह कर जाते ,
कह तो क्या वे मुझको अपनी पग बाधा ही पाते ?
मुझको बहुत उन्होंने माना
फिर भी क्या पूरा पहचाना ?
मैंने मुख्य उसी को जाना
जो वे मन मे लाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
स्वयं सुसज्जित कर के क्षण मे ,
प्रियतम को प्राणों के पण मे ,
हमी भेज देती है रण मे -
क्षात्र धर्म के नाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
हुआ न यह भी भाग्य अभागा ,
किस पर विफल गर्व अब जागा ?
जिसने अपनाया था, त्यागा ;
रहे स्मरण ही आते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
नयन उन्हें है निष्ठुर कहते ,
पर इनसे आंसू जो बहते ,
सदय ह्रदय वे कैसे सहते ?
गए तरस ही खाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
जाये , सिद्धि पावे वे सुख से ,
दुखी न हो इस जन के दुःख से ,
उपालम्भ दू मैं किस मुख से ?
आज अधिक वे भाते !
सखी वे मुझसे कह कर जाते !
गए लौट भी वे आवेगे ,
कुछ अपूर्व, अनुपम लावेगे ,
रोते प्राण उन्हें पावेगे,
पर क्या गाते गाते ?
सखी वे मुझसे कह कर जाते !


2 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

रश्मि जी आप को धन्यवाद । बहुत ही भावनात्मक कविता प्रस्तुत की ।

Ek ziddi dhun ने कहा…

ये कविता मुझे काफी अच्छी लगती रही।